Freedom Fighter Maulana Abul Kalam Azad : भारत की आज़ादी की लड़ाई में जिन महान व्यक्तित्वों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उनमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। उनका वास्तविक नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था, लेकिन वे पूरी दुनिया में मौलाना आज़ाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक महान विद्वान, शिक्षाविद, चिंतक और कवि भी थे। उन्हें अरबी, उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली जैसी कई भाषाओं पर समान अधिकार था। उनके नाम “अबुल कलाम” का अर्थ ही है – “बातचीत का देवता”।
मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का में हुआ था। उनके पूर्वज अफगानिस्तान के हेरात शहर से थे, और पिता मौलाना खैरुद्दीन सिपाही विद्रोह के दौरान भारत से मक्का चले गए थे। दो साल की उम्र में ही अबुल कलाम भारत लौट आए और कोलकाता में बस गए। पारंपरिक मुस्लिम पृष्ठभूमि में पले-बढ़े अबुल कलाम को प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही मिली। अरबी और फ़ारसी में दक्षता के बाद उन्होंने गणित, दर्शन, ज्यामिति और फिर स्वाध्याय के माध्यम से अंग्रेजी, राजनीति और इतिहास का अध्ययन किया।
जन्म और शिक्षा
क्रांतिकारी चेतना का उदय
अपने युवाकाल में मौलाना आज़ाद ने अफगानिस्तान, मिस्र, तुर्की, इराक और सीरिया की यात्राएँ कीं और वहां के क्रांतिकारियों से प्रभावित हुए। इन अनुभवों ने उन्हें केवल धार्मिक चिंतक से उठाकर एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी बना दिया। भारत लौटने के बाद उन्होंने अरविंद घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती से मुलाकात की और गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए। उन्होंने बंगाल और बिहार के बाहर भी क्रांति की चिंगारी फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पत्रकारिता से जनजागरण
1912 में उन्होंने उर्दू साप्ताहिक पत्रिका “अल-हिलाल” की शुरुआत की। यह पत्रिका जल्दी ही ब्रिटिश राज के विरुद्ध क्रांति की आवाज बन गई और हिंदू-मुस्लिम एकता का मंच भी बनी। जब अल-हिलाल को अंग्रेजों ने बंद करवा दिया, तब आज़ाद ने “अल-बलाग” नाम से दूसरी पत्रिका शुरू की, जिसने आज़ादी के आंदोलन को और गति दी।
कांग्रेस और गांधी जी के साथ यात्रा
खिलाफत आंदोलन के दौरान वे पूरी तरह से महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए और 1920 में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन का जोरदार समर्थन किया और 1940 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने। विभाजन के वे कट्टर विरोधी थे और भारत को एक संघात्मक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे जहाँ हिंदू-मुस्लिम एकता कायम रहे। लेकिन जब विभाजन हुआ, तो यह उनके लिए गहरा आघात था।
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री
1947 में आज़ादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में चुना गया। वे 1947 से 1958 तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी कदम उठाए। उनके प्रयासों से ही आईआईटी, यूजीसी, साहित्य अकादमी, जैसे संस्थान अस्तित्व में आए। उन्होंने भारत के बौद्धिक निर्माण में नींव का कार्य किया।
निधन और सम्मान
22 फरवरी 1958 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के दशकों बाद 1992 में उन्हें भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। भारत में हर वर्ष 11 नवंबर को “राष्ट्रीय शिक्षा दिवस” के रूप में उनके जन्मदिवस को मनाया जाता है।