
टोक्यो। जापान की राजनीति में बड़ा भूचाल आया है। प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन को उच्च सदन के चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। इसके साथ ही 1955 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब एलडीपी और उसके सहयोगी कोमेइतो ने दोनों सदनों में बहुमत खो दिया है। इससे इशिबा की सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
हालिया उच्च सदन चुनाव में गठबंधन को बहुमत हासिल करने के लिए 50 सीटें चाहिए थीं, लेकिन वे केवल 46 सीटें ही जीत सके। अकेले एलडीपी ने 38 सीटों पर कब्जा किया। अक्टूबर में निचले सदन में बहुमत खोने के बाद यह दूसरा बड़ा झटका है।
हालांकि, जापान के संवैधानिक ढांचे के अनुसार ऊपरी सदन में सरकार को गिराने का अधिकार नहीं है, लेकिन संसद में विधेयक पास कराना अब बेहद कठिन होगा। विपक्ष मजबूत हुआ है और मुख्य विपक्षी पार्टी सीडीपीजे ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की है। डीपीपी और संसेतो जैसे छोटे दलों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है।
इशिबा ने चुनावी नतीजों को स्वीकार करते हुए कहा कि वे जिम्मेदारी से नेतृत्व करते रहेंगे। उन्होंने हार की वजह महंगाई और आर्थिक मुद्दों पर जनता की नाराजगी को माना। लेकिन पार्टी के अंदर अब उनके इस्तीफे या नेतृत्व परिवर्तन की मांगें तेज हो सकती हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन नतीजों ने न केवल सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि जापान की नीति और नेतृत्व की दिशा को लेकर भी गंभीर बहस छेड़ दी है।