
नई दिल्ली/संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने पाकिस्तान पर करारा प्रहार करते हुए उसे एक ऐसा देश बताया है जो कट्टरता और आतंकवाद में पूरी तरह डूबा हुआ है और आर्थिक रूप से आईएमएफ (IMF) पर लगातार निर्भर है। भारत के इस कड़े रुख ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की भूमिका और उसकी नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने ‘बहुपक्षीयता और शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का समाधान’ विषय पर आयोजित एक अहम चर्चा के दौरान यह तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा:
“एक ओर भारत है — एक परिपक्व लोकतंत्र, उभरती हुई अर्थव्यवस्था और समावेशी समाज। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान है — जो कट्टरता और आतंकवाद में डूबा हुआ है और बार-बार IMF से कर्ज मांगने वाला देश बन चुका है।”
“शून्य-सहिष्णुता के बिना शांति की कल्पना व्यर्थ”
राजदूत हरीश ने ज़ोर देकर कहा कि जब तक आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति नहीं अपनाई जाती, तब तक अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा केवल एक कल्पना बनी रहेगी।
सुरक्षा परिषद की सदस्यता पर सवाल
पाकिस्तान की भूमिका पर सीधा हमला बोलते हुए उन्होंने कहा:
“यह अत्यंत शर्मनाक है कि सुरक्षा परिषद का एक सदस्य देश दूसरों को उपदेश देता है, जबकि वह खुद उन्हीं कृत्यों में लिप्त है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय अस्वीकार करता रहा है।”
पहलगाम आतंकी हमले और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र
राजदूत ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का उल्लेख किया जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे। इस पर भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों को सटीकता से निशाना बनाया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अभियान संयमित, केंद्रित और गैर-उत्तेजक था और पाकिस्तान के अनुरोध पर ही इसे समाप्त किया गया।
आतंकवाद पर भारत की स्पष्ट नीति
राजदूत हरीश ने भारत का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत बहुपक्षीयता और शांतिपूर्ण समाधान के मार्ग पर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। उन्होंने दोहराया कि जो देश “अच्छे पड़ोसी के सिद्धांत” का उल्लंघन करेंगे, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति, उसकी अर्थव्यवस्था और आतंकवाद को लेकर भूमिका पहले से ही वैश्विक जांच के घेरे में है। भारत के इस कड़े संदेश को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में साफ और निर्णायक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है