बांके बिहारी मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का तंज- जो लाखों की आस्था का केंद्र है, वो निजी कैसे?

नई दिल्ली/मथुरा श्री बांके बिहारी मंदिर, मथुरा के प्रबंधन और 500 करोड़ रुपये के मंदिर फंड से कॉरिडोर निर्माण को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। मंदिर प्रबंधन और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच इस विवाद को लेकर कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए सभी पक्षों को आपसी वार्ता से समाधान निकालने की सलाह दी।

भगवान श्रीकृष्ण को बताया ‘पहले मध्यस्थ’, वार्ता का सुझाव

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, “भगवान कृष्ण पहले मध्यस्थ थे। कृपया आप लोग भी इस मामले को वार्ता के जरिए हल करें।” कोर्ट ने यूपी सरकार और मंदिर ट्रस्ट से आपसी बातचीत कर समाधान निकालने को कहा और स्पष्ट किया कि फिलहाल अध्यादेश की संवैधानिक वैधता की जांच नहीं हो रही है।

मंदिर को निजी बताने पर कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया

याचिकाकर्ताओं के वकील सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने दलील दी कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है, और राज्य सरकार उसके धन पर नियंत्रण कर रही है। इस पर कोर्ट ने कहा, “आप एक धार्मिक स्थल को ‘निजी’ कह रहे हैं, यह भ्रम है। जहां लाखों श्रद्धालु आते हैं, वह निजी कैसे हो सकता है? प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन कोई देवता निजी नहीं हो सकता।”

सरकारी इरादे पर कोर्ट ने जताया भरोसा

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार मंदिर के फंड पर कब्जा नहीं करना चाह रही, बल्कि मंदिर के विकास और श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु उसका उपयोग करना चाहती है। कोर्ट ने तिरुपति और शिरडी जैसे मंदिरों का उदाहरण देते हुए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत पर भी जोर दिया।

प्रबंधन के लिए अस्थायी व्यवस्था का प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम समाधान के रूप में सुझाव दिया कि मंदिर का प्रबंधन एक रिटायर्ड हाईकोर्ट जज या वरिष्ठ जिला जज को सौंपा जा सकता है। साथ ही, कोर्ट ने संकेत दिया कि वह एक कमेटी का गठन भी कर सकता है, जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जज करेंगे।

सभी पक्षों से मांगे सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मसले पर मंदिर प्रशासन, राज्य सरकार और अन्य पक्षों से विस्तृत सुझाव मांगे हैं ताकि व्यापक समाधान निकल सके। अगली सुनवाई में कोर्ट इस दिशा में और ठोस आदेश जारी कर सकता है।

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