दुर्ग | दुर्ग जिले में पिछले पांच महीनों में कुत्तों के काटने की 2585 घटनाएं सामने आई हैं। इनमें से 174 मामलों में संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए मरीजों को एंटी रैबीज वैक्सीन (एआरवी) के साथ-साथ इम्युनोग्लोबिन सीरम भी लगाया गया। समय पर इलाज मिलने से इन सभी मरीजों की जान बच गई। मगर बिलासपुर में इसी लापरवाही ने एक युवक की जान ले ली। आठ महीने पहले 38 वर्षीय युवक को कुत्ते ने काटा था, लेकिन उसने एआरवी इंजेक्शन नहीं लगवाया। संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ा और रविवार को रायपुर में उसकी मौत हो गई।
मध्यप्रदेश के रीवा में भी एक महीने पहले रैबीज संक्रमण से 14 वर्षीय बच्चे की जान चली गई थी। बच्चे का वीडियो, जिसमें वह कुत्तों की तरह व्यवहार कर रहा था, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
रैबीज से जुड़े डरावने आंकड़े और सच्चाई
भारत में हर साल करीब 20 लाख डॉग बाइट के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 1 से 1.25 लाख के बीच रहता है। विश्व स्तर पर हर साल रैबीज के कारण 59,000 लोगों की मौत होती है, इनमें 40 प्रतिशत बच्चे होते हैं। भारत में यह संख्या 21,000 के पार है।
रैबीज से बचाव में लापरवाही जानलेवा
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार सावंत बताते हैं कि कुत्ते के काटने के बाद यह धारणा गलत है कि उसके मरने का इंतजार करना चाहिए। काटने के ग्रेड के अनुसार तुरंत एआरवी और जरूरत पड़ने पर सीरम लगवाना चाहिए। कई बार नाखून की खरोंच से भी रैबीज का संक्रमण हो सकता है, क्योंकि संक्रमित कुत्ते की लार उसके नाखूनों में चिपक जाती है।
झाड़-फूंक नहीं, सिर्फ वैक्सीन और सीरम ही बचाव का उपाय
कुत्ते या अन्य जानवर के काटने पर घरेलू नुस्खों, झाड़-फूंक आदि पर भरोसा करना जान जोखिम में डालने जैसा है। रैबीज वायरस नर्वस सिस्टम में सालों तक सक्रिय रह सकता है और 20 साल बाद भी लक्षण दिख सकते हैं। संक्रमण के बाद बचाव असंभव हो जाता है, इसलिए सही समय पर वैक्सीन और सीरम लगवाना ही एकमात्र उपाय है।
पालतू कुत्तों की देखभाल में बरतें यह सावधानियां
डॉ. सावंत के अनुसार, कुत्तों का नियमित वैक्सीनेशन कराना बेहद जरूरी है। जिन लोगों का कुत्तों से संपर्क अधिक होता है (पशु प्रेमी, रेस्क्यू वर्कर, ब्रीडर्स आदि), उन्हें एंटी रैबीज वैक्सीन की प्री-एक्सपोजर डोज लेना चाहिए।
वैक्सीन और सीरम में फर्क समझना जरूरी
रैबीज वैक्सीन वायरस को कमजोर करती है, जबकि सीरम वायरस को खत्म करता है। यदि काटने का घाव गहरा हो या एक से अधिक घाव हो, तो वैक्सीन के साथ-साथ सीरम लगाना अनिवार्य है।
रैबीज के लक्षण और उपचार प्रक्रिया
रैबीज वायरस शरीर में तंत्रिका तंत्र के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचता है। वहां संक्रमण होने पर मरीज में पानी और अंधेरे से डरने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। कुत्ते के काटने के बाद शरीर के हिस्से के अनुसार संक्रमण का खतरा भी बढ़ता है। चेहरे, गर्दन, हाथ के पंजों पर काटने पर संक्रमण घातक हो सकता है। ऐसी स्थिति में वैक्सीन के साथ-साथ सीरम भी लगाना अनिवार्य हो जाता है।
इंजेक्शन का पूरा कोर्स ही सुरक्षा की गारंटी
वैक्सीनेशन में चमड़ी में 0.1 एमएल (एक-एक बाजू में) डोज 0, 3, 7 व 28वें दिन दी जाती है। वहीं मसल्स में 0.5 एमएल की डोज 0, 3, 7, 14 और 28वें दिन लगाई जाती है। सीरम को बॉडी वेट के अनुसार 40 यूनिट प्रति किलो वजन में दो भागों में बांटा जाता है—आधा घाव के आसपास और आधा कमर में।
दुर्ग में जागरूकता और समय पर इलाज से 174 लोगों की जान बच गई, मगर बिलासपुर का युवक इसका उदाहरण है कि लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। कुत्ते के काटने पर तुरंत चिकित्सकीय परामर्श और उपचार ही रैबीज से बचाव का एकमात्र विकल्प है।