नहीं बदलेगा ईरान का रुख, खामेनेई ने वार्ता की अटकलों पर लगाया विराम

तेहरान |  ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने अमेरिका पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि अमेरिका ईरान से अपनी बात मनवाना चाहता है, लेकिन इस्लामी गणराज्य कभी भी झुकेगा नहीं। उन्होंने इसे अपमानजनक मांग बताते हुए अमेरिका के साथ किसी भी तरह की सीधी बातचीत से साफ इनकार कर दिया।

समाचार एजेंसी के हवाले से बताया कि खामेनेई ने रविवार को तेहरान में दिए अपने भाषण में कहा कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से अमेरिका लगातार ईरान के खिलाफ शत्रुता दिखाता आया है। उन्होंने कहा, “अमेरिका इसलिए ईरान का विरोध करता है क्योंकि वह चाहता है कि हम उसकी बात मानें। लेकिन यह कभी संभव नहीं होगा।”

हमलों और साजिशों का जिक्र

खामेनेई ने हाल ही में 13 जून को ईरान पर हुए हमले का जिक्र करते हुए दावा किया कि अमेरिका से जुड़े कुछ समूह अगले ही दिन एक यूरोपीय राजधानी में इस्लामी गणराज्य के बाद की व्यवस्था पर चर्चा कर रहे थे। यहां तक कि राजशाही व्यवस्था की वापसी तक का सुझाव दिया गया। उन्होंने कहा कि ईरानी जनता की मजबूती और संस्थाओं की दृढ़ता ने इन सभी कोशिशों को नाकाम कर दिया।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जून में इजरायल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसका उद्देश्य ईरान को अस्थिर करना था। हालांकि, खामेनेई के मुताबिक, ईरान ने इन हमलों का जवाब देकर यह साबित किया कि देश अपने विरोधियों के सामने झुकने वाला नहीं है।

घरेलू एकता पर जोर

अपने संबोधन में खामेनेई ने राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के प्रति समर्थन जताते हुए जनता से आह्वान किया कि वे घरेलू एकता बनाए रखें। उन्होंने चेतावनी दी कि ईरान के विरोधी अब देश के भीतर विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

गाजा और क्षेत्रीय हालात पर टिप्पणी

खामेनेई ने गाजा में इजरायल की कार्रवाई की कड़ी निंदा की और पश्चिमी देशों से उस पर दबाव डालने तथा सैन्य मदद रोकने की अपील की। इसके साथ ही उन्होंने यमन के हूती समूह द्वारा इजरायल के खिलाफ उठाए गए कदमों को “जायज प्रतिरोध” बताया।

अमेरिका-ईरान रिश्तों में तल्खी बरकरार

ज्ञात हो कि 1979 की इस्लामी क्रांति और अमेरिकी दूतावास में हुए बंधक संकट के बाद से दोनों देशों के रिश्ते टूटे हुए हैं। उस समय से वाशिंगटन ने तेहरान पर कई आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए हैं। हाल के वर्षों में यह तनाव और बढ़ा है, खासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लगाए गए नए प्रतिबंधों के कारण।

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