Atal Bihari Vajpayee: देशभक्ति और दूरदृष्टि का अटल युग: एक युग पुरुष की गाथ

Atal Bihari Vajpayee: भारतीय राजनीति में एक ऐसा युग था जिसे ‘अटल युग’ कहा जा सकता है। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक स्कूल शिक्षक थे, और माता कृष्णा देवी थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर, ग्वालियर और हाई स्कूल की शिक्षा गोरखी स्कूल, ग्वालियर से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस) में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 

यह वह समय था जब एक राजनीतिज्ञ अपने शब्दों की ताकत, सादगी भरे आचरण और दृढ़ विचारों से पूरे देश का मार्गदर्शन कर रहा था। 13 अक्टूबर 1999 को जब अटल बिहारी वाजपेयी ने लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तो यह न केवल उनकी राजनीतिक जीत थी, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और राष्ट्र की सामूहिक सोच का प्रमाण भी था।

राजनीति में चार दशकों तक निरंतर सक्रिय

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय संसद में कुल ग्यारह बार (नौ बार लोकसभा, दो बार राज्यसभा) के लिए चुने गए। संसद की कार्यवाही में उनका योगदान अद्वितीय रहा है। वे भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने जो पूर्ण कार्यकाल तक सरकार चलाने में सफल रहे।

उनकी राजनीतिक शुरुआत 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से हुई थी। एक छात्र के रूप में उन्होंने उस समय ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। यही राष्ट्रप्रेम आगे चलकर उन्हें देश के सबसे सम्मानित नेताओं में एक बना गया।

विचारों से बने वैश्विक नेता

वाजपेयी जी की भाषण शैली, अंतरराष्ट्रीय मामलों की गहरी समझ और उदार दृष्टिकोण ने उन्हें वैश्विक मंचों पर भी भारत की सशक्त आवाज बना दिया। विदेश मंत्री रहते हुए संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में पहला ऐतिहासिक भाषण देने वाले वे पहले भारतीय नेता बने।

उनके नेतृत्व में भारत ने परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया। 1998 में पोखरण-2 परीक्षण के माध्यम से भारत ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि वह शांति चाहता है, लेकिन आत्मरक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम भी है।

कवि, पत्रकार और संवेदनशील राजनेता

राजनीति में आने से पहले उन्होंने पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभाई। वे ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’ और ‘स्वदेश’ जैसे पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। उनका साहित्यिक रुझान उन्हें एक भावनाशील नेता के रूप में सामने लाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, करुणा और व्यंग्य का अनोखा समन्वय देखने को मिलता है।

“हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा” – उनकी यह पंक्ति उनके पूरे जीवन और कार्यशैली का प्रतीक रही।

सशक्त भारत के स्वप्नद्रष्टा

प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने ‘सर्व शिक्षा अभियान’, ‘स्वर्णिम चतुर्भुज योजना’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’, और सार्वजनिक क्षेत्र में दूरसंचार सुधार जैसे ऐतिहासिक कार्यों की शुरुआत की। उन्होंने एक ऐसा भारत सोचा, जहां हर गांव तक सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान पहुंचे।

सद्भाव और समानता के पक्षधर

अटल जी महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता, साम्प्रदायिक सौहार्द और लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव को कभी डगमगाने नहीं दिया। वे भारतीय राजनीति में सौम्यता और दृढ़ता का दुर्लभ संगम थे।

सम्मान और विरासत

वाजपेयी जी को 1992 में पद्म विभूषण और 2015 में भारत रत्न से नवाज़ा गया। 1994 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी मिला। वे न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन और एक युग थे।

जय अटल, जय भारत!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *