दुर्ग.चंडी मंदिर के बाद बैगापारा का शीतला मंदिर शहर की सबसे बड़ी आस्था का केंद्र है. बताया जाता है कि दुर्ग के राजा जगतपाल के राज्य का उनके किले में स्थापित यह शीतला मंदिर है। मान्यता है कि माता शीतला की कृपा से न सिर्फ सुख-शांति और समृद्धि मिलती है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से भी छुटकारा मिलता है।
प्राचीन गजट व सरकारी दस्तावेजों में दर्ज जानकारी के मुताबिक भोंसले शासनकाल तक दुर्ग एक किला था और यहां राजा जगतपाल का राज्य था। बताया जाता है कि,दुर्ग के किले में राजा का दरबार लगता था और यहीं से वे राज्य का संचालन करते थे। बैगापारा के शीतला मंदिर, किल्ला मंदिर, चंडी मंदिर के अलावा छातागढ़ के हनुमान मंदिर व छातागढ़ बाबा मंदिर में वे प्रतिदिन पूजा अर्चना करते थे।

राजा यही निवास भी करते थे। आपको बता दें,गोंड़ राजवंश होने के कारण यहां से पश्चिम में गोड़ पारा अब भी मौजूद है। इसी से लगा बैगापारा तात्कालीन व्यवस्था में बैगा यानि पुजारियों का स्थान माना जाता है। बताया जाता है कि प्राचीन व्यवस्था में माता शीतला की पूजा का दायित्व बैगाओं के हाथ में होता था। इसी से स्थल का नाम बैगापारा हुआ। यहां हर साल दोनों नवरात्रि में 1561 ज्योति कलश प्रज्वलित किया जाता है।
मंदिर समिति से जुड़े मनोज चंद्राकर बताते हैं कि मंदिर को लेकर आज भी प्राचीन आस्था है कि यहां पूजा अर्चना करने से हर प्राकृतिक आपदा का निराकरण हो जाता है। इसी परंपरा के अनुरूप यहां बेहद श्रद्धा से जुड़वास पर्व मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि लोगों में मान्यता है कि मंदिर में पूजा अर्चना और यहां का जल शरीर में लगाने से छोटी और बड़ी माता (चिकनपॉक्स) का निवारण हो जाता है।यह आस्था वर्षों से आज तक बरकरार है।