अलविदा मत कहो दोस्तों…अभी तो बाकी है जिंदगी का फ़लसफा: डॉ. अरुण मिश्रा

डॉ. अरुण मिश्रा लोकतन्त्र प्रहरी के दैनिक पाठक द्वारा भेजे गए पत्र से..

अलविदा मत कहो दोस्तों

अभी तो बाकी है जिंदगी का फ़लसफा,
इतनी जल्दी जुदा मत करो दोस्तों ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

सीधा साधा हूं थोड़ा सा जिद्दी भी हूँ, पर तुम तो खुदा ना बनो दोस्तो ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

है सुनाने को तुमको बहुत कुछ मगर, कुछ सुनने की तुम्हारी तो आदत नहीं ¦
सोचा मिलके ही कर लूँगा गुफ़्तगू, किया ना गैरों से कोई शिकायत कभी ¦¦

मुझको आने में थोड़ी सी देर क्या हुई, तुम ने कह दिया सबको चलो दोस्तों ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

समझते नहीं हो इतना समझाने पर, और समझाऊं तुमको भला किस कदर ¦
डर सा लगने लगा है कहीं खो ना दूँ, तुमको पाने से पहले मेरे हमसफ़र ¦¦

रहम थोड़ा सा कर लो अगर कर सको, इतना बेरहम मत बनो दोस्तों ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

इससे पहले मैं खामोश खोया हुआ, रहता था ख़्यालों में गुम सुम ¦
हसरतें बढ़ गई जीने की मेरी, मेरी वीरान दुनिया में आए जब तुम ¦¦

अब आ ही गए हो तो ठहर जाओ ना, जाने वाली जिद ना करो दोस्तों ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

अभी तो बाकी है जिंदगी का फ़लसफा, इतनी जल्दी जुदा मत करो दोस्तों ¦
पहुँचा हूं अभी अपकी महफ़िल में, अभी अलविदा मत कहो दोस्तों ¦¦

    डॉ. अरुण मिश्रा "अकेला"

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