
हर महफिल की शान बनी ‘शराब’ पर कविता
जान ये शराब है
कितनी हम-दम, हम-सफ़र हम नवाब है
हर महफिल की शान , जान ये शराब है
भले हैं वो जो पीकर मगन रहते है
जो पीकर बहक जाए उन्हें खराब है
हर महफिल की शान, जान ये शराब है…..
लूक छिप के पीने में मजा जो, नहीं खुले आम पीने में
इसके बिना दुनिया में “अकेला” मजा कहाँ जीने में
क्या महँगी क्या सस्ती कोई रखता नहीं हिसाब है
हर महफिल की शान , जान ये शराब है ….
कोई खुशी में कोई ग़म, कोई मौसम में पीता है
हर मयकश, मैख़ाने में मस्ती से जीता है
दो घूंट जब घटक जाएं, फिर खुली हुई किताब है
हर महफिल की शान , जान ये शराब है….
चाहे लाखों साथी हों संग, इसके बिना सब खाली
घूम रहे हो गोवा बीच में, या घूमें कुल्लू मनाली
अगर यार हो मय संग, फिर तो बिन सावन बरसात है
हर महफिल की शान, जान ये शराब है…..
कितनी हम-दम, हम सफर, हम नवाब है
हर महफिल की शान, जान ये शराब है
डॉ. अरुण मिश्रा “अकेला