Jesus Christ | क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में ईसा मसीह (Jesus Christ) के जन्मदिवस के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। प्रभु यीशु को ईसाई धर्म के प्रवर्तक और मानवता, प्रेम, सेवा व त्याग का प्रतीक माना जाता है। क्रिसमस केवल ईसाइयों का ही नहीं, बल्कि मानवता का भी पर्व बन चुका है। आइए जानते हैं प्रभु यीशु के जन्म से लेकर ईस्टर तक की प्रेरक गाथा—
जन्म स्थान: बेथलेहम – एक पवित्र शुरुआत
प्रभु यीशु का जन्म फिलिस्तीन के नगर बेथलेहम में हुआ था। यही स्थान आज ‘चर्च ऑफ नेटिविटी’ के नाम से विख्यात है। यह जगह यरुशलम से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है।
ईसा मसीह के जन्म की तिथि पवित्र ग्रंथ बाइबल में स्पष्ट नहीं है, लेकिन ईसाई परंपराओं के अनुसार उनका जन्म 1 AD से 4 BCE के बीच माना जाता है। उनकी माता का नाम मरियम (Mary) और पिता का नाम यूसुफ (Joseph) था, जो पेशे से बढ़ई थे।
देवदूत की भविष्यवाणी
ऐसा कहा जाता है कि देवदूत गेब्रियल ने मरियम को दर्शन देकर बताया था कि उन्हें ईश्वर का पुत्र प्राप्त होगा, जिसका नाम यीशु होगा। इस दिव्य भविष्यवाणी के पश्चात परमेश्वर के संकेत पर यूसुफ ने मरियम से विवाह किया।
जीवन के गुमनाम वर्ष और भारत से संबंध
ईसा मसीह के जीवन के 13 से 30 वर्ष की जानकारी बाइबल में नहीं मिलती। किंवदंतियों के अनुसार इस समय उन्होंने भारत की यात्रा की और यहां बौद्ध धर्म, योग और वेदों का अध्ययन किया।
उपदेश और धर्म की स्थापना
30 वर्ष की आयु में उन्होंने धर्म का प्रचार शुरू किया। उन्होंने लोगों को प्रेम, क्षमा, दया और सेवा का संदेश दिया। वे समाज में व्याप्त अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड के कट्टर विरोधी थे। उनके विचारों से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में अनुयायी जुड़ने लगे।
सत्ता से टकराव और सूली पर चढ़ाया जाना
प्रभु यीशु की बढ़ती लोकप्रियता से धार्मिक कट्टरपंथी और रोमन शासक पोंटियस चिंतित हो उठे। अंततः उन्हें सूली पर चढ़ाकर मृत्युदंड दिया गया। यह घटना यरुशलम के गोलगोथा पर्वत पर घटित हुई। आज यह स्थान ‘चर्च ऑफ द होली सेपुलचर’ के नाम से जाना जाता है।
ईस्टर: पुनरुत्थान का चमत्कार
ईसाई परंपरा के अनुसार, यीशु को सूली पर चढ़ाने के तीन दिन बाद, वे पुनः जीवित हो उठे। इस घटना को ईस्टर पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो जीवन में आशा और पुनरुत्थान का प्रतीक है।
क्रिसमस का महत्व
हर वर्ष 25 दिसंबर को दुनिया भर में क्रिसमस मनाया जाता है – प्रभु यीशु के जन्म की स्मृति में। यह दिन प्रेम, करुणा और मानवता के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
ईसा मसीह का जीवन त्याग, समर्पण, और सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख देता है। उन्होंने कभी खुद को भगवान नहीं कहा, लेकिन अपने कर्मों और विचारों से पूरी दुनिया को नई दिशा दी।