
पटना। बिहार में साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान को लेकर सूबे की राजनीति गर्मा गई है। इस फैसले के विरोध में निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने 9 जुलाई को बिहार बंद और चुनाव आयोग कार्यालय के घेराव का एलान कर दिया है।
‘क्या यह नोटबंदी के बाद वोटबंदी है?’
सांसद पप्पू यादव ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि बिहार में गरीबों, दलितों, आदिवासियों और प्रवासी मजदूरों से भारतीय होने का सबूत मांगा जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया,
“क्या हम भारतीय नहीं हैं? क्या हम नेपाल या बांग्लादेश से हैं? क्या यह नोटबंदी के बाद अब वोटबंदी की तैयारी है?”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आयोग आधार कार्ड, राशन कार्ड और पहले से मौजूद मतदाता सूची को भी स्वीकार नहीं कर रहा, जिससे लाखों लोगों का वोट कटने का खतरा है।
‘हमारे अधिकार छीने जा रहे हैं’
पप्पू यादव ने कहा कि यह प्रक्रिया एक साजिश है, जिसके तहत विशेष समुदायों को वोटिंग अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
“यह सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है। यह नस्ल खत्म करने की कोशिश है। चुनाव आयोग का कार्यालय अब आरएसएस का युवा मोर्चा बन गया है। हम 9 जुलाई को आमने-सामने की लड़ाई लड़ेंगे।”
उन्होंने बताया कि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों का समर्थन भी उन्हें मिला है, और कांग्रेस प्रभारी ने 9 जुलाई को पूरे बिहार में बंद का समर्थन किया है।
हाईकोर्ट में दी जाएगी चुनौती
पप्पू यादव ने कहा कि वह इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने जा रहे हैं। उन्होंने केंद्र और राज्य की एनडीए सरकार पर लोकतंत्र को कुचलने का आरोप लगाते हुए कहा कि
“हम इस लड़ाई में कांग्रेस के साथ हैं। वोट देना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे कोई भी सरकार या संस्था छीन नहीं सकती।”
चुनाव आयोग का फैसला और विपक्ष की आपत्ति
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 24 जून को विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण का आदेश जारी किया था, जो 25 जून से 25 जुलाई 2025 तक चलेगा। इस प्रक्रिया के तहत बिहार के मतदाताओं को अपनी नागरिकता और पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे।
विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक करार देते हुए आरोप लगाया है कि इसका मकसद दलितों, पिछड़ों, गरीबों और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से हटाना है।