डॉ. अरुण मिश्रा द्वारा पहलगाम की मार्मिक घटना पर लिखी गई कविता

लोकतन्त्र प्रहरी के पाठक द्वारा भेजे गए पत्र से..

उन जालिमों ने

बे- फिकर थे मगन, बैठे अपनों के संग,
एक पल में उनकी दुनिया वीरान कर दिया |
बे-दर्द, बे – मुरव्वत जिनकी है ये हकीकत,
उन जालिमों ने फिर से वही काम कर दिया ||

खोया किसी ने बेटा,किसी ने बाप खोया,
बस थी सात दिन सुहागन जिसने सिंदुर खोया

एक स्वर्ग सी धरा को लहू-लुहान कर दिया |
उन जालिमों ने फिर से वही काम कर दिया ||

खौला के खून देश का फिर अपनी मुंह की खाया,
लतखोर पाकिस्तान है ये सेना ने बताया

घर में घुस के दुश्मन का काम तमाम कर दिया |
उन जालिमों ने फिर से वही काम कर दिया ||

होगा अमन चमन में, खुशहाल आवाम होगी, जिसका खो गया सुहाग बेटा मां कहां फिर होगी,

दरिंदों ने दरिंदगी से कत्लेआम कर दिया |
उन जालिमों ने फिर से वही काम कर दिया ||
बे- फिकर थे मगन बैठे अपनों के संग,
एक पल में दुनिया उनकी वीरान कर दिया |
उन जालिमों ने फिर से वही काम कर दिया ||

डॉ. अरुण मिश्रा “अकेला”

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