धान खरीद में बड़ा खेल: मिलरों की मनमानी और मार्कफेड की चुप्पी पर सवाल

रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में धान खरीदी और कस्टम मिलिंग को लेकर गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। नए खरीफ सीजन 2024-25 की तैयारियों के बीच पिछले सीजन का करोड़ों रुपये का धान राइस मिलरों के पास फंसा हुआ है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस धान की सुरक्षा के लिए ली गई बैंक गारंटी की अवधि समाप्त हो चुकी है, जबकि मार्कफेड इस मामले में कोई कड़ा कदम नहीं उठा रहा है।

मिलरों ने उठाया धान, पर चावल नहीं जमा किया
रायगढ़ में 128 मिलरों ने 272 अनुबंधों के तहत धान उठाकर उसकी मिलिंग करनी थी और चावल नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) और एफसीआई (FCI) को जमा करना था। अनुबंध के अनुसार, मिलरों को उठाए गए धान की कीमत के बराबर बैंक गारंटी भी जमा करनी थी, ताकि चावल न जमा होने की स्थिति में सरकार को सुरक्षा मिल सके। लेकिन अब अधिकांश मिलरों की बैंक गारंटी जून के पहले हफ्ते में एक्सपायर हो चुकी है।

मार्कफेड की संवेदनहीनता से बढ़ी समस्या
मिलरों द्वारा चावल न जमा करने और बैंक गारंटी समाप्त होने के बाद भी मार्कफेड ने न तो गारंटी को रिन्यू कराने का प्रयास किया, न ही मिलों में जाकर भौतिक सत्यापन किया। इससे सरकारी धान बिना किसी सुरक्षा के मिलरों के पास पड़ा है, जो लाखों करोड़ों रुपये के नुकसान का खतरा पैदा करता है।

लापरवाही पर उठे सवाल
विशेषज्ञों और आम जनता का सवाल है कि अगर मिलरों ने अनुबंध के उल्लंघन किया है तो मार्कफेड की भूमिका क्यों निष्क्रिय है? क्या विभाग मिलरों को संरक्षण दे रहा है? अगर समय रहते कड़ी कार्रवाई की गई होती तो लाखों करोड़ों की सरकारी संपत्ति बचाई जा सकती थी।

सरकार की जिम्मेदारी और समाधान की गुंजाइश
सरकार को तत्काल—

  • मिलों में धान का भौतिक सत्यापन कराना चाहिए।
  • बैंक गारंटी की अवधि बढ़ाने के लिए मिलरों पर दबाव बनाना चाहिए।
  • डिफॉल्टर मिलरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज करनी चाहिए।

अगर ये कदम नहीं उठाए गए तो सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हो सकता है और किसानों के हितों को ठेस पहुंचेगी।

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