प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता भगवान गणपति और माता गौरी की पूजा-अर्चना की जानें विधि,माता-पिता की परिक्रमा से मिला प्रथम पूज्य का वरदान

हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश और माता गौरी की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है, वहीं माता गौरी को सौंदर्य, समृद्धि और शक्ति की देवी कहा गया है। इनकी पूजा विशेष रूप से गणेश चतुर्थी, गौरी पूजन, हरतालिका तीज, विवाह, गृह प्रवेश या किसी शुभ कार्य से पहले की जाती है।

पूजन की संपूर्ण विधि :

1. पूजन की तैयारी:

प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।

भगवान श्री गणेश एवं माता गौरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

2. कलश स्थापना:

एक तांबे या मिट्टी के पात्र में जल भरकर आम के पत्ते और नारियल रखकर कलश स्थापित करें।

कलश के समीप रोली, चावल, दूर्वा, पुष्प, कपूर, अगरबत्ती आदि रखें।

3. श्री गणेश पूजन:

भगवान गणेश को स्नान कराकर वस्त्र, जनेऊ, चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।

21 दूर्वा, 21 लड्डू का विशेष महत्व होता है।

गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश स्तोत्र या “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।

4. माता गौरी पूजन:

माता गौरी को सिंदूर, चूड़ी, कुमकुम, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री अर्पित करें।

“ॐ गौरीमाता नमः” या “ॐ शिवायै नमः” मंत्र का जप करें।

महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए कथा वाचन और व्रत रखती हैं।

5. नैवेद्य और आरती:

फल, मिठाई, नारियल, पान-सुपारी का भोग लगाएं।

गणेश जी और माता गौरी की संयुक्त आरती करें – “जय गणेश देवा” व “जय गौरी शंकरा”।

6. व्रत कथा और प्रार्थना:

पूजा के पश्चात गणेश व गौरी व्रत कथा सुनना या पढ़ना पुण्यदायक माना जाता है।

अंत में क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद वितरण करें।

पूजा का महत्व:

श्री गणेश और माता गौरी की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, वैवाहिक जीवन सुखमय होता है, संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं। यह पूजा विशेष रूप से विवाहित महिलाएं सौभाग्य व आरोग्यता के लिए करती हैं।

भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ की गई पूजा जीवन में हर संकट को हरती है और मंगल की राह प्रशस्त करती है।

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