पहली बार कब जला रावण का पुतला? दशहरे की अनकही कहानी, जानें शुरुआत कब और कैसे हुई थी?

नेशनल डेस्कः पूरे देश में विजयादशमी यानी दशहरे की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इस बार दशहरा (2 अक्टूबर 2025)  आज मनाया जाएगा। परंपरागत रूप से इस दिन भगवान राम की असत्य पर विजय और मां दुर्गा द्वारा महिषासुर वध की स्मृति में रावण का पुतला जलाया जाता है।

रावण दहन की शुरुआत

आज देशभर में हजारों स्थानों पर रावण दहन होता है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक शुरुआत अपेक्षाकृत नई मानी जाती है। कहा जाता है कि वर्ष 1948 में झारखंड के रांची शहर में शरणार्थियों ने पहली बार रावण दहन किया था। दिल्ली में 1953 में रामलीला मैदान पर आयोजित कार्यक्रम से यह परंपरा लोकप्रिय हुई और धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गई।

दशहरे का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

दशहरा, नवरात्र के नौ दिनों के उपवास और साधना के बाद विजय का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी, वहीं मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। इसलिए इस दिन को ‘विजयदशमी’ कहा जाता है।

संदेश और प्रतीक

रावण दहन केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देता है। यह बुराई, अहंकार और अन्याय पर अच्छाई, सत्य और धर्म की जीत का प्रतीक है। आजकल रावण के साथ मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले भी जलाए जाते हैं, ताकि यह संदेश और गहराई से लोगों तक पहुंचे।

आज का उत्सव

दिल्ली का रामलीला मैदान, वाराणसी, लखनऊ, जयपुर, कोलकाता और अमृतसर जैसे शहर बड़े पैमाने पर रावण दहन के लिए प्रसिद्ध हैं। आतिशबाजी, झांकियों और मेलों के बीच यह आयोजन एक विशाल सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले चुका है। यहां तक कि विदेशों में बसे भारतीय भी दशहरा मनाते हैं और रावण दहन की परंपरा निभाते हैं।

दशहरा हर साल यह याद दिलाता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, अंत में जीत हमेशा अच्छाई और धर्म की ही होती है।

(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. लोकतंत्र प्रहरी इसकी पुष्टि नहीं करता है)

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